Thursday, January 19, 2012

अवांछित बेटियां


अवांछित बेटियां

अपने गर्भ में आये विनष्ट मादा भ्रूणों की स्मृतियों को शाखा ने गुडियों के रूप में सहेज लिया था। जब घर में अंबर नहीं होता और वह अकेली होती तो छुपाकर रखी इन गुडियों को वह कबर्ड से निकालती, फिर उन्हें अपने सीने से चिपका कर मातृत्व की सरिता द्वारा सींचने लग जाती। तीन बार गर्भपात की वह शिकार हुई थी, इसलिये तीन गुडियां थीं उसके पास। इनके नाम तक रखकर उसने क्रोशिये और धागे से लिख दिये थे उनकी कलाइयों पर। हर बार वह इनकी उम्र का हिसाब लगाती और एक अपराधबोध से भरकर विह्वल हो जाती, '' मुझे माफ कर देना मेरी बच्चियों! तुम सबको कोख में ही मार देने के जुल्म में पति और समाज के साथ मैं भी साझीदार  हूं। चाहती थी कि तुम सबकी और तुम्हारे जैसी अनेकों की मां बन कर मैं फलों से लदा एक विशाल छतनार पेड बन जाऊं। पति नामधारी पुरुष के बिना गर्भ धारण करना और फिर भरण - पोषण करना संभव होता और उसमें समाज का कोई दखल नहीं होता तो मैं अपनी दसों इन्द्रियों की कसम खाकर कहती हूं, मेरी अजन्मी पुत्रियों, मैं अभी से सिर्फ और सिर्फ लडक़ियों को जन्म देती,  जिनकी संख्या कम से कम दो दर्जन होती बल्कि इससे भी ज्यादा कर पाती तो मुझे और मजा आता।''

शाखा जब कॉलेज में पढती थी तब से ही सहेलियों से अपने मनोभावों को शेयर करती हुई यह इच्छा जताती थी कि वह बहुत सारी लडक़ियों की मां बनना चाहती है।  सहेलियां उसका तेवर जानतीं थीं और यह समझती थीं कि ऐसा कह कर दरअसल वह अपने भीतर के एक विरोध को मुखर कर रही है। उसके परिवार में कई बाल - बच्चेदार दम्पत्ति थे, बडे भाइयों और चाचाओं के,  लेकिन सबने बडी चालाकी से सिर्फ नर शिशुओं को जन्म दिया था। सिर्फ एक उनके पिता थे, जिन्होंने कोई चालाकी नहीं की थी, इसलिये उन्हें चार बेटियां ही थीं और इसके लिये वे एक हीनभावना से हमेशा ग्रसित रहा करते थे। घर के दूसरे लोग भी इस मामले को लेकर उनके प्रति उपेक्षा - भाव रखते थे। शाखा को इन स्थितियों से सख्त ऐतराज था और इस ऐतराज की प्रतिक्रिया में वह दर्जनों बेटियों की मां बनना चाहती थी। मगर विवाह के तुरन्त बाद ही उसे पता चल गया कि वह महज उसकी एक अपरिपक्व सोच एवं भावुकता थी।

जब पहला ही गर्भ ठहरा तो अम्बर ने भ्रूण परीक्षण के लिये उसे तैयार होने को कहा, '' शाखा मुझे लडक़ी नहीं चाहिये। तुम अपनी आंखों से देख चुकी हो कि छोटी बहन की शादी ने मुझे कितनी जिल्लत दी और किस कदर दिवालिया बना दिया। आज भी उसकी ससुराल के कुत्ते मेरे जिस्म को नोंच रहे हैं, जैसे मैं उनका जन्मजात
कर्जदार हूं। अब और साहस नहीं है कि बेटी ब्याहने के नाम पर कोई दोबारा मेरी खाल उतार ले। मामूली सी नौकरी है, जिसके जरिये अपने लिये भी चन्द हसरतें और चंद सपने पूरे करने हैं, अन्यथा यह जिन्दगी दहेज जमा करने में ही स्वाहा हो जायेगी।''

शाखा को एकबारगी लगा था कि अंबर के उठाए मुद्दे को वह बेजा नहीं ठहरा सकती। यह सच है कि परिधि के विवाह में उसने क्या कुछ नहीं सहा। चार साल तक पागलों की तरह भटकने के बाद थक - हारकर उसे अपनी हैसियत से बाहर जाकर एक बडी दहेज राशि पर एक रिश्ता तय करना पडा। क्लर्क से रिटायर हुए पिता की सारी जमापूंजी, छह सात साल की अपनी नौकरी में काट - कपटकर की गयी बचत और ऊपर से हर मुमकिन कर्ज लेकर जो कुल जमा हुआ, वह अब भी काफी कम था उस दाम से जो लडक़े के बाप ने अपने बेटे के लिये लगाया था। अपनी बहन परिधि को अंबर बहुत प्यार करता था। वह एक अच्छे घर में जाकर सुख से रहे, यह उसकी दिली ख्वाहिश थी। लडक़े के पिता के सामने जाकर उसने हाथ जोड दिये, '' खुद को पूरी तरह निचोडक़र भी मैं इतना रस नहीं निकाल सका कि आपके इच्छा - पात्र को भर सकूं। मुझ पर कृपा कर के थोडी सी रियायत''

जैसे उसके उबल पडने का कोई स्विच ऑन हो गया हो, वह फनफना उठा -
 '' तो तुम भाड में जाओ, मेरा घर कोई राहत केन्द्र नहीं है। कई लोग पहले ही क्यू में हैं, तुम अपनी बराबरी की कोई दूसरी जगह ढूंढ लो।''
 ऐसा बेमुरव्वत सलूक तो कोई सूदखोर महाजन भी नहीं करता होगा। उसने समझ लिया कि बेहतर है यहां से जाकर किसी कसाई से अनुरोध किया जाय। इस घर में परिधि कभी सुखी नहीं रह सकती।

उसने दूसरे घर - वर की तलाश शुरु कर दी इसमें दो वर्ष और लग गये। धैर्य की ऐसी सख्त परीक्षा शायद इस दुनिया में अन्य किसी भी चीज क़े ढूंढने में नहीं हो सकती। एक बार तो उसे ऐसा भी लगा कि इस परीक्षा में बार बार फेल हो जाना ही उसकी नियति है। परिधि के लिये लडक़ा ढूंढना उससे शायद संभव नहीं।

उसके एक रिश्तेदार ने सलाह दी, '' अगर ऊंची रकम देने की सामर्थ्य नहीं है तो पसंद - चयन की कसौटी को जरा लचीला कर लेना चाहिये।''

अन्तत: उसने ऐसा ही किया। अपनी रूपवती - गुणवती बहन के लिये उसे एक डेढ आंख वाले थुथुरमुंहे लडक़े को पसन्द करना पडा। यहां नगद उतना ही मांगा गया, जितना वह दे सकता था। खुद को यह समझाकर शादी कर दी कि चेहरे की स्थूल सुन्दरता से कहीं बडी होती है आंतरिक सुन्दरता। मगर यहां आलम यह था कि कोई सी भी सुन्दरता नहीं थी। शादी के बाद परिधि को मंहगे घरेलू उपकरण मांग लाने के लिये परेशान किया जाने लगा। अंबर एक की पूर्ति करता तब तक दूसरी मांग फिर उग आती।  तात्पर्य यह कि परिधि की जान प्रताडना और थूकम - फजीहत की सांसत में जाकर फंस गयी। अंबर से आये दिन थुथुरमुंहा और उसके परिवार की रार - तकरार मचने लगी।

यह परिस्थिति आज भी जारी है, ऐसे में अगर वह बेटी के बाप होने को अभिसाप मानकर इससे बचने के लिये सख्त एहतियात बरतना चाहता है तो शाखा इस मानसिकता को समझ सकती है। उसने उसकी मन:स्थिति से सहमति व्यक्त करते हुए कहा, '' मैं तुम्हारी पीडा से अलग नहीं हूं अम्बर। दहेज के दानवी चेहरों ने हजारों - लाखों घर उजाडे हैं और बेशुमार जिन्दगियां तबाह की हैं लडक़ियां फिर भी जन्म लेती रही हैं और दुनिया को अगर रुक नहीं जाना है तो जन्म लेती ही रहेंगी।  तुम्हारी तो एक ही बहन थी, मेरे पिता ने तो चार बेटियों को ब्याहा है। उनके एक जमाई तुम भी हो, तुमने तो उनसे कभी कुछ लेने में रुचि नहीं दिखाई। तो लोग तुम्हारी तरह भी हैं दुनिया में। मेरी यह पहली प्रेगनेन्सी है, इसे प्लीज र्निद्वन्द्वता से सम्पन्न होने दो। पहले इशू में कोई वर्जना, कोई रुकावट, कोई संशय उचित नहीं। अगर बेती भी होती है तो हमें उसे स्वीकार करना है। आखिर बेटी के रूप में कम से कम एक संतान घर में जरूरी भी है और उसकी परवरिश हमारा दायित्व भी है।''

अंबर ने कोई जिरह नहीं की। शाखा तनिक अचम्भित रह गई इतनी आसानी से वह मान जायेगा, सोचा नहीं था। कुछ पल चिंतामग्न रहने के बाद कहा उसने, '' एक बेटी घर के लिये कितनी अहम् होती है, यह मुझसे ज्यादा कौन जान सकता है शाखा? जब मेरी मां चल बसी थी तो बहुत छोटी होकर भी परिधि ने ही पूरे घर को संभाला था। मैं उससे कई साल बडा था, लेकिन घर को संवारने - संभालने और रसोई सीधी करने के मामले में मैं किसी काम का नहीं था। दमा और हृदय रोग के मरीज बाऊजी को परिधि ने अपनी सुश्रुषा से हमेशा संतुष्ट रखा। वे कहते थे मुझे, '' अपनी परिधि की सुघडता देखो, अंबर। इसने घुट्टी में ही कब सीख लिया यह सब, हमें पता ही नहीं चला। ऐसी ही बेटियां घर की लक्ष्मी कही जाती हैं। इसके मनोहारी बर्ताव, सम्बोधन और बोल घर को स्वर्ग का आभास दिलाने लगते हैं। मैं न भी रहूं तो इसका ब्याह खूब अच्छी जगह करना बेटे।'' कहकर एक दीर्घ नि:श्वास भरी अम्बर ने।

'' बाऊजी सचमुच उसके ब्याह के लिये नहीं रहे और मैं ऐसा नालायक साबित हुआ कि चाह कर भी परिधि के लिये मनोनुकूल घर - वर नहीं ढूंढ सका। बेचारी हमेशा दबी - घुटी - सहमी और उदास रहती है।'' एक मायूसी उतर आई अम्बर के चेहरे पर, '' परिधि की हालत देखता हूं तो घर में दूसरी बेटी की उपस्थिति की कल्पना मात्र से हृदय थर्रा जाता है। लेकिन तुम चाहती हो कि मातृत्व के तुम्हारे पहले अवसर को स्वछंद रहने दिया जाये तो चलो मैं तुम्हारी भावना को आहत नहीं करता,  मगर इसके साथ ही यह आश्वासन भी चाहता हूं कि अगली बार तुम फिर मेरे सामने ऐसे सवाल उठा कर मेरी परीक्षा नहीं लोगी।''

शाखा ने हंसी में अनुराग घोलते हुए कहा, '' अगर बेटा हो गया इस बार तो अगली बार भी मेरा यह सवाल कायम रहेगा ।''
 '' चलो मान लिया।'' अंबर भी हंस दिया, स्निग्ध और समर्पण की हंसी।
पति - पत्नी के बीच यह दिल्लगी भरा मुंहजवानी करार हो गया।

शाखा ने बालिका शिशु को जन्म दिया, आशंका ऐसी ही थी, हालांकि दोनों ने मन ही मन पुत्र प्राप्ति की घनघोर कामना की थी। नियति प्राय: ऐसा ही विधान रचती है, जिससे आप भागना चाहते हैं,  वह आपके पीछे लग जाती है।

मुन्नी घर में पलने लगी, लाड - प्यार के सहज और स्वाभाविक परिवेश में पलने लगी। बिना किसी ग्रन्थि के। बर्ताव में ऐसी शालीनता की सीमा बस यहीं तक रही। अगले इशू से उनकी प्राथमिकता बदल गई।

दूसरे, तीसरे और चौथे गर्भ का हश्र गुडियों में परिवर्तित हो गया। हर बार शाखा का शरीर ही नहीं अंतस भी लहूलुहान हुआ। वह सोचती थी कि एक देवकी थी जिसके जन्मे बच्चे को उसका भाई कंस नष्ट कर देता था, एक वह है जिसके बिनजन्मे बच्चे को ही उसका पति नष्ट करवा देता है। कंस को अपनी मृत्यु का भय और उसके पति कोधन और मान की हानि का भय है। देवकी को बचाने के लिये कई शक्तियां थीं, मगर वह स्वयं अपने आपको भी बचाने का उपक्रम नहीं करती। कंस क्रूर और बर्बर था, जबकि उसका पति उदार और भावुक है।

शाखा के मन में आता कि जब गर्भपात ही उसकी नियति है तो फिर वह गर्भ धारण ही क्यों करे? क्यों नहीं ऑपरेशन करवा कर इस झंझट से ही मुक्त हो जाये। संतान के नाम पर मुन्नी तो है ही। बेटा नहीं हो रहा तो न हो ज़रूरी भी क्या है? लेकिन अगले ही पल वह इस सच्चाई की पकड में आ जाती कि ऐसे निर्णय लेने को भी क्या वह स्वतन्त्र है?  मतलब एक औरत न तो अपनी मरजी से मां बन सकती है और न मां बनने से इंकार कर सकती है। अपनी कोख तक पर उसे अधिकार नहीं। अधिकार की बात वह करे भी तो कैसे, आखिर अंबर उसे प्यार भी तो कम नहीं करता। प्यार के नाम पर भी कभी - कभी कितना कुछ बर्दाश्त करना होता है।

अंबर ने कहा, '' यह हमारी आखिरी कोशिश होगी और तुम्हारी आीखरी तकलीफ। बहुत ज्यादती सह ली तुमने। अगर बेटा रह गया तो ठीक है, वरना इससे छुट्टी पाकर बस मुन्नी से ही हमें सब्र कर लेना है।''

शाखा को लगा कि दोनों के मन के बीच जैसे कोई टेलीपैथी हो गयी। यही तो वह भी चाहती है। अब भला ऐसे आत्मीय और मीठे संभाषण करने वाले पति को कोई खलनायक कैसे करार दे? क्या प्यार और विश्वास भी खलनायकी का अस्त्र हो सकता है? उसके मन ने कहा,  शायद हां और शायद ज्यादा खतरनाक एवं अचूक भी।

डॉक्टर के पास गये वे लोग। उसकी जानकारी में शहर में एक ही डॉक्टर था जो यह काम करता था। इस काम के लिये डॉक्टर ऊंची फीस लेता था। गर्भ परीक्षण करके गर्भाशय की धुलाई भी उसके जिम्मे होती थी।  परीक्षण पर वैधानिक प्रतिबंध लगने के बाद डॉक्टर ने यों यह धंधा बन्द कर दिया था, फिर भी कुछ खास परिस्थितियां और कुछ खास लोग नियम - कानून के दायरे से हमेशा, कई जगह, कई बार बाहर तो होते ही हैं। डॉक्टर से बहुत नजदीकी से जान पहचान हो जाने बाद अंबर भी खुद को इसी खास श्रेणी में मानता था।

डॉक्टर से अंबर ने कहा, '' अंतिम बार आपको कष्ट देने आया हूं। इस बार अगर नर भ्रूण न रहा तो धुलाई करके बंध्याकरण का ऑपरेशन कर दीजिए।''

डॉक्टर ने बहुत देर तक अंबर और शाखा की आंखों में झांक कर देखा और कहा, '' इस बार तुम्हें निराश होना पडेग़ा भाई। मैं ने यह काम पूरी तरह बन्द कर दिया है। दुनिया को असंतुलित करने का अपराध अब और मुझसे नहीं होगा।''
 '' डॉक्टर आप जानते हैं कि किसी भी शर्त पर मुझे यह काम करना है। यहां नहीं तो कहीं और जाना होगा, कहीं और भटकना होगा तथा मुझे ज्यादा पैसे खर्च करने होंगे, ज्यादा परेशान होना पडेग़ा। ऐसा अन्याय आप हम पर क्यों करेंगे?''
 '' मतलब समाज और कानून तुम्हारे लिये कोई मायने नहीं रखते?''
 '' बहुत मायने रखते हैं मैं पहले भी कह चुका  हूं यह समाज और कानून आखिर क्यों यह व्यवस्था नहीं करता कि लडक़ियों के प्रति भेदभाव न हो और उनकी शादी में फकीर और दीवालिया होने की नौबत न आये। अगर ऐसा हो जाये तो मेरा दावा है कि लडक़ियों के जन्म को सर्वत्र प्राथमिकता मिलने लगेगी। चूंकि यह सभी जानते हैं कि बेटियों से न सिर्फ दुनिया आगे चलती है, बल्कि खूबसूरत भी बनती है। मां - बाप को सहारा और सम्मान देने के मामले में लडक़ियों का बर्ताव असंदिग्ध रूप से विश्वसनीय होता है।''

डॉक्टर जानता था कि यह आदमी माननेवाला नहीं है अपनी बहन की शादी में जो दंश झेल चुका है, उसे भूल नहीं सकता। एक बार तो वह परिधि को भी लेकर आ गया था। परिधि ने अपने भाई का समर्थन करते हुए कहा था , '' भैया ठीक कहते हैं, डॉक्टर! बेटी वही पैदा करे जिसके घर में लाखों - करोडाें जमा हों। मैं आज भी अपने घर में रौरव भोग रही हूं। यह जीवन ही मेरा मानो व्यर्थ होकर रह गया। मेरे बाद एक और लडक़ी इस घर में आ चुकी है, अब दूसरी भी अगर आ गयी तो भैया खुद को बेचकर भी कोई उपाय नहीं कर पायेंगे।''

डॉक्टर ने अपने मन में एक निश्चय किया और फिर शाखा का अल्ट्रासाउण्ड करके खुशखबरी देने के अन्दाज में बताया, '' अरे! यह तो चमत्कार हो गया। इस बार भ्रूण मादा नहीं नर है। मुबारक हो, बेटे का बाप बनोगे तुम।''
ठगा सा रह गया अंबर। शाखा को भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। डॉक्टर मजाक तो नहीं कर रहा। लेकिन डॉक्टर की भंगिमा मजाक की कतई नहीं थी।

छह महीने तक उन्हें इंतजार करना था  किया। इस दौरान कई सपने, हसरतें सजाते रहे।  खुशियां कई शक्लें अख्तियार कर उनके भीतर हिलोरें लेती रही। वे बेटे को पालने, पढाने और ब्याहने तक की मानसिक रूपरेखा तैयार करते रहे।

इंतजार की बहुप्रतीक्षित घडी ख़त्म हुई और शाखा का प्रसव सम्पन्न हो गया। जन्म लेने वाला शिशु बालक नहीं बालिका थी। अंबर को लगा जैसे आसमान से चारों खाने चित्त गिर गया हो धरती पर। डॉक्टर ने झूठ कह कर उसके साथ छल किया। क्यों किया उसने ऐसा? इस झूठ की उसे कितनी बडी क़ीमत चुकानी होगी, बार - बार बताने पर भी उसने समझने की कोशिश नहीं की। उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड क़िया। मुन्नी के लिये अभी से ही उसे एक चौथाई तनख्वाह की सेविंग करनी पड रही थी, फलस्वरूप वह स्थायी तौर पर तंगी और अभाव का शिकार था। एक और के लिये भी अगर ऐसी व्यवस्था करनी पडे तो फिर महीने दस दिन उपवास में ही गुजारने होंगे। अंबर आपे से बाहर हो गया और चट्टान जैसी कठोरता उसके चेहरे पर उतर आयी। नवजात शिशु को लेकर वह डॉक्टर के पास चला गया।
 '' डॉक्टर'' जैसे दहाड उठा अम्बर, '' तूने मेरे साथ बहुत भद्दा और बेहूदा मजाक किया है, मैं इसके लिये तुम्हें कभी माफ नहीं कर सकता।  तुम्हें इसकी सजा भोगनी होगी।''

डॉक्टर स्तब्ध रह गया, हमेशा शिष्ट और शालीन आचरण करने वाला व्यक्ति क्या इतना प्रचण्ड रूप धारण कर सकता है?
 '' तुमने झूठ बता कर मेरी आधी अधूरी खुशियों पर कहर बरपा दिया है। गर्भ में जिसे तुमने लडक़ा बताया वह लडक़ी थी। इसके पैदा होने के जिम्मेदार तुम हो, इसलिये इसे मैं तुम्हारे पास छोडने आया हूं। अगर तुमने इसे लेने से इंकार कर दिया तो मेरे पास इसे सिवा मृत्यु देने के कोई और उपाय नहीं । चूंकी मेरी ओर से इसे मृत्यु मिलन िथी, वह अगर तीन महीने की भ्रूणावस्था में नहीं मिली तो अब मिल जायेगी और इसकी जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ तुम पर होगी।''
डॉक्टर की जिह्वा तालू से चिपक गयी थी अपने नवजात शिशु के प्रति एक पिता क्या इतना असहिष्णु और निर्मम हो सकता है? पितृत्व की गोद अगर कांटेदार हो गयी थी तो क्या मातृत्व के स्तन का दूध भी सूख गया? शाखा ने जुल्म ढाने के लिये इस दुधमुंही को इसके हवाले कैसे कर दिया? क्या व्यवस्था वाकई इतना सड - ग़ल गयी है कि मातृत्व और पितृत्व जैसे मूल्य बेमानी हो गये हैं? एक बच्चा जो दुनिया में आता है, पूरी तरह पराश्रित होता है, उसे आप फेंक दें,  काट दें, गाड दें इसका उसे कोई बोध नहीं होता।

लेकिन यह एक नैतिकता है, मनुष्य में नहीं जानवरों तक में कि वे अपने नवजात बच्चे के लिये अधिकतम उदार, शुभेच्छु और पालनहार होते हैं। आज एक मां बाप ही अपने बच्चे को मारने पर तुले हैं, महज इसलिये कि शिशु बालक नहीं बालिका है। तो यह दुनिया इतनी खराब और बुरी हो गयी?

डॉक्टर ने अत्यन्त दुखी होकर कहा, '' माना कि मुझसे गलती हो गयी, हालांकि हुई नहीं। गलती तो मैं पहले करता रहा, इस बार तो मैं ने पिछली गलतियों को सुधारने की कोशिश की है। खैरमैं ने चाहे जो भी किया मगर अब जो तुम करने जारहे हो वह इन्सानियत के नाम पर भयानक धब्बा होगा।''

'' बकवास मत करो डॉक्टर,  मैं तुमसे यहां कोई पाठ पढने नहीं आया हूं। मेरे लिये क्या अच्छा और क्या बुरा है,  इसका फैसला मुजे खुद करना है। तुम्हारे पास कई बार मैं ने अपना दुखडा रोया,  फिर भी तुमने ऐतबार नहीं किया। तुम अगर समझते हो कि मैं बहुत हिंस्त्र,  बर्बर और जालिम हूं तो यही सही। अब बताओ इस बच्ची को यहां छोडूं या ले जाकर कहीं दफन कर दूं?''

डॉक्टर एक गहरे अर्न्तद्वन्द्व में घिर गया। दो बित्ते के लाल टुड - टुड करते फूल जैसे मासूम कोमल जिस्म की दो छोटी - छोटी बेहद निरीह और पवित्र आंखें चारों ओर नाच रही थींकभी मुस्कुरा कर कभी रोकर। जैसे इस दुनिया में आने का उसे हर्ष भी हो रहा था शोक भी। डॉक्टर को लगा कि इस नन्हीं सी जान को जिन्दगी से बेदखल करना सरासर अन्याय होगा। भ्रूण की बात कुछ और होती है, मगर अब यह पूरी तरह प्राण धारण किया हुआ एक मानवीय शरीर है। अंबर के चेहरे पर जिस तरह खून और वहशीपन सवार है कि आज वह कुछ भी कर गुजरेगा। बहुत दूर तक न सोच कर फिलहाल इसे बचाने का उपक्रम करना जरूरी है।

उसने कहा, '' ठीक है, तुम्हें बेटी नहीं चाहिये न तो इस नन्हीं सी जान को मेरे पास छोड दो। लेकिन मेरी एक शर्त है - तुम्हारे घर में जो आठ वर्ष की हो चली पहली बेटी है, उसे भी मेरे सुपुर्द करना होगा। आखिर उसे भी रखने का तुम्हें हक क्या है और फिर उससे भी मुक्त होकर क्यों नहीं तुम जरा ठाट से बसर करो।''

कुछ पल के लिये अम्बर हतप्रभ रह गया। कोई भी जवाब देते न बना।
डॉक्टर ने फिर कहा, '' सोच में क्यों पड ग़ये, तुम्हें तो दोहरी खुशी होनी चाहिये। तुम एक से पिण्ड छुडाना चाहते थे, मैं दोनों से छुडवा रहा हूं।''
 '' ठीक है, मैं तैयार  हूं।'' उसका चेहरा तमतमा गया, ''  तुम्हें अगर मसीहा बनने का ज्यादा ही शौक है तो मुझे क्या आपत्ति! हालांकि तुम्हारी इस शर्त के पीछे का मकसद मैं समझ गया हूं। तुमने मेरी यह नस ठीक पकडी है कि मुन्नी को हमने आठ साल तक पाला है और उससे हठात् मोह झटक देना हमारे लिये आसान नहीं। लेकिन इस अवांछित नन्हीं के विवाह की पर्वतनुमा जिम्मेवारी से बचने के लिये मैं यह करने को भी तैयार हूं।''

नन्हीं को छोड क़र वह घर चला गया। शाखा को जल्दबाजी में सूचित कर दिया कि डॉक्टर नन्हीं के साथ मुन्नी की भी परवरिश का जिम्मा मांगता है। इसलिये मुन्नी को लेकर जा रहा हूं उसे सौंपने।

शाखा फटी आंखों से उसे देखती रह गई और अम्बर मुन्नी को लेकर यों चला गया जैसे वह घर की फालतू निष्प्राण वस्तु हो। घर में कोई सामान भी होता है तो उसका हट जाना एक खालीपन का आभास जगाता रहता
है । मुन्नी को तो आठ वर्ष तक अपने घनिष्ठ लाड प्यार के साये में कलेजे के टुकडे क़ी तरह रका था शाखा ने। वह प्रसूति अवस्था में पडी नन्हीं से बिछुडने के सदमे से उबर भी नहीं पायी थी कि एक और आघात पर्वत टूटने की तरह बरस पडा छाती पर। एक औरत की क्या इतनी ही औकात है कि जब चाहा उसकी कोख उजाड दी, जब चाहा उसकी गोद छीन ली?  गाय - बकरियों से भी गयी गुजरी हालत। इस विषय पर उससे मशविरा किया जाये, इस लायक भी उसे नहीं समझा गया?

शाखा अभी तक अपनी अजन्मी बेटियों के नाम की गुडिया सहेजती रही थी, अब उसे इसी श्रेणी में एक साथ दो जीवित आत्माओं की स्मृतियों को भी सहेजना पडेग़ा। वह जब इन गुडियों से आत्मालाप और कन्फेशन करती थी, मुन्नी भी इन्हें छूकर रोमांचित हो उठती थी। अब वह भी इनके साथ एक नयी गुडिया के रूप में शामिल हो जायेगी। शाखा की आंखें जार जार बहने लगीं जो आठ साल तक उसकी दिनचर्या की हर सांस में शरीक रही है, उसका बिछोह क्या सहा जा सकेगा? खासकर यह जानते हुए कि वह जीवित है और इसी शहर में है!

अंबर ने मुन्नी को बहला - फुसला कर डॉक्टर के पास छोड दिया और घर लौट आया। डॉक्टर उसकी मुद्रा देखता - पढता रहा, जो न सिर्फ आवेश भरी थी बल्कि उसमें व्याकुलता और हिचकिचाहट का भाव भी समाया था। वह मानसिक रूप से बिलकुल ही स्वस्थ नहीं लग रहा था।

How To Formet Computer


How to format windows xp using a Windows XP disc

Okay guys let’s learn how to format windows xp. But calm down and take your time. To learn how to format a computer is a matter of being patient! This is the best advice I can give you.
First you must put your Windows XP CD in the drive.
Then restart your computer.
When it says press any key to boot from cd, Press any key on the keyboard. I use the space bar, easy to get to. (If you can do this Go to step 6)
If it doesn’t ask you to  press any key to boot from cd then restart your computer again.
Go into the BIOS settings of your PC, usually by pressing the F1, F2, F10, or maybe the delete key. If you are not sure watch the screen at startup and it will say “To enter setup press…….”. You have to be quick and press it. If you miss it restart again. Once you are in the bios you have to change the boot options. You have to make your cd rom the first boot option. Save and exit. If you do not understand how to get into your BIOS please see how to get into your BIOS and change settings.
When the CD starts up A blue screen will appear and you are on your way..


Press Enter to setup Windows XP now. See screen shot above. Do not rush through this process as pressing the wrong key here can take you down the wrong road. You should take your time when its your first time learning how to format a computer using windows xp.
If there is a copy of Windows XP on your computer and you wish to overwrite it you will have to press the escape button when prompted. (screen shot below) Do not install Windows XP in another directory unless you know what you are doing. Just overwrite the previous version as you should have backed up your files anyway. In this example I am showing you how to format a computer that has already had Windows installed on it.


You should now make the partition that had windows on it blue and press D to delete the partition. It will ask if you are sure. Press L to confirm. More details on deleting partitions.
Then Press C to create another partition and Windows will estimate a size for you. If you wanted to partition your hard drive into two equal parts you would have to do some math’s and then type the appropriate number in. Otherwise just going with what Windows puts there will be the minimum partition size. If you make a mistake when estimating the size of a partition you can simply go back now and delete the partition and start again. Do not move forward if you have made a mistake.
Press Enter to confirm size.
Then it will ask you which partition you want to install Windows on. The default is C: drive. Select this by making it blue and press enter.
If there are no partitions it will create one for you.
Then it will ask you to format quick, normal, in fat32 or NTFS. Fat32 suits older computers so I choose a quick format with NTFS. Quick or Slow is fine. If you had errors it is better to use a slow format which can also be known as a low level format. When you format a computer please note that a low level format can take a long time, depending on what size hard drive you have.
From now on you just Follow the prompts and let it go..the process of formatting your computer is on its way. Some setup files will be taken from the Windows CD onto your computer to complete this process.
The computer will restart and it will try to boot from cd again…Do not press anything on the keyboard.. Just let it go through the stages of setup. You only press the ANY KEY at the start to get it to boot to the Windows XP cd.
Make sure you have your serial number ready to enter in. This can be found on your coa sticker which is a sticker usually put on the side of your computer.
Do not remove the Windows XP CD until the computer has started up with a new desktop and icons.

Now the next process begins.. Installing your device drivers for your computer. See What are Device Drivers and why do I need them for my computer?

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